हेलो दोस्तों कैसे हो आप सब। मुझे लगता है ,खुश होंगे मस्त होंगे यार। वैसे भी आज मैं फिर से आ गया हूं आप लोगो को टेन्शन देने,ऐसा सोचने को मजबूर करने के लिए कि हमे माँस खाना चाहिए या नही?
वैसे तो आज कल मनुष्य अपने स्वाद के लिये कुछ भी खा लेता हैं । पर बाद मै जब उसे बीमारी घेर लेती है , तब वो सोचता हैं कि मैने ये सब गलत चीजे क्यों खाई। तो बात करते है माँस की।
जैसा कि आप सब जानते ही होंगे मनुष्य के पास न तो मांसाहारी दाँत है और न ही आँत। कहने का मतलब ये है कि,मनुष्य जाति प्राकृतिक रूप से शाकाहारी है किंतु अपनी जीभ का स्वाद बदलने के लिए लोग मांसाहारी भोजन खाते है। वैसे तो जो जीव जीभ से चिपकाकर पानी पीते है, वास्तव मे माँस का भोजन उनके लिए होता है। इस प्रकृति ने मांस नोचने के लिए उन्हें नुकीले दाँत दिए ओर मांस को पचाने वाली आंत। इसमे कुत्ता,बिल्ली,शेर, बाघ आदि जैसे जीव आते है। वही दूसरी तरफ जो घूँट
-घूँटकर कर पानी पीते है वो शाकाहारी होते हैं । जैसे--- गाय,बंदर, मनुष्य आदि।
इसलिए जब प्रकृति ने हमे न मांस खाने के लिए नुकीले दांत ओर न मांस पचाने वाली आंत तो हम ये मांस क्यों खाये?
ये सब आपको सोचना है, वैसे भी मांसाहारी बनने से जीवहत्या को प्रोत्साहन मिलता है। ओर कही पर तो मंदिरों मे जीवहत्या कर के मनुष्य देवी-देवताओं को खुश करते हैं। क्या कभी ऐसा हो सकता है,किसी की बलि लेकर भगवान खुश हो सकते है।
मुझे लगता है ये हमारी संस्कृति, सभय्ता एवं धर्म के अनुकूल नही है। आप सब को क्या लगता है ?
Tuesday 10 July 2018
आखिर क्यों?
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